दाह के ज्वालमुखी को
अंतस मेंछिपाए हुए
कैसी है ये वेदना
कैसी है जलन
मिटा नहीं सकता जिसे
शीतल निर्झर का भी जल
असंख्य पहाड़ कष्टों के
मन के कोमल बिछौने पर
सुलाए हुए
शिराओं में दहकते
अंगारों के पुंज
"प्रसव "से भी भयंकरतम
असीम पीडाओं के ज्वार
शांत हो जायेंगे तब
वेदना के गर्भ से जब
जन्मेंगे 'शिशु ' सृजन के.