गुरुवार, 3 मार्च 2011

SRIJAN

दाह के ज्वालमुखी को 
अंतस मेंछिपाए हुए 
कैसी है ये वेदना 
कैसी है जलन 
मिटा नहीं सकता जिसे
शीतल निर्झर का भी जल 
असंख्य पहाड़ कष्टों के 
मन के कोमल बिछौने पर 
सुलाए हुए 
शिराओं में दहकते 
अंगारों के पुंज 
"प्रसव "से भी भयंकरतम 
असीम पीडाओं के ज्वार
शांत हो जायेंगे तब 
वेदना के गर्भ से जब 
जन्मेंगे 'शिशु ' सृजन के.

2 टिप्‍पणियां:

  1. aapki kavita se gujarna achchha laga-
    "prasav se bhee bhayankartam
    aseem pidaon ke jvar
    shaant ho jaengen tab
    vedna ke garbh se jab
    janmenge "shishu" srijan ke.'
    sundar prastuti.

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    1. उत्साहवर्धन और प्रशंसा के लिए अनेक अनेक धन्यवाद , अशोक जी .

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