दाह के ज्वालमुखी को
अंतस मेंछिपाए हुए
कैसी है ये वेदना
कैसी है जलन
मिटा नहीं सकता जिसे
शीतल निर्झर का भी जल
असंख्य पहाड़ कष्टों के
मन के कोमल बिछौने पर
सुलाए हुए
शिराओं में दहकते
अंगारों के पुंज
"प्रसव "से भी भयंकरतम
असीम पीडाओं के ज्वार
शांत हो जायेंगे तब
वेदना के गर्भ से जब
जन्मेंगे 'शिशु ' सृजन के.
aapki kavita se gujarna achchha laga-
जवाब देंहटाएं"prasav se bhee bhayankartam
aseem pidaon ke jvar
shaant ho jaengen tab
vedna ke garbh se jab
janmenge "shishu" srijan ke.'
sundar prastuti.
उत्साहवर्धन और प्रशंसा के लिए अनेक अनेक धन्यवाद , अशोक जी .
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