गुरुवार, 3 मार्च 2011

SRIJAN

दाह के ज्वालमुखी को 
अंतस मेंछिपाए हुए 
कैसी है ये वेदना 
कैसी है जलन 
मिटा नहीं सकता जिसे
शीतल निर्झर का भी जल 
असंख्य पहाड़ कष्टों के 
मन के कोमल बिछौने पर 
सुलाए हुए 
शिराओं में दहकते 
अंगारों के पुंज 
"प्रसव "से भी भयंकरतम 
असीम पीडाओं के ज्वार
शांत हो जायेंगे तब 
वेदना के गर्भ से जब 
जन्मेंगे 'शिशु ' सृजन के.